॥ श्राद्ध ॥
आयुः कीर्ति बलं तेजो,धनं पुत्रं पशुं स्त्रियः।
ददन्ति पितरस्यतस्य,आरोग्यं नात्रं संशयः।।
धर्म शास्त्र में कहा गया है कि जो मनुष्य श्राद्ध करता है, वह पितरों के आशीर्वाद से आयु, यश, बल, वैभव, सुखसुविधा, पुत्र, परिवार और आरोग्य को प्राप्त करता है।
॥ श्राद्ध पक्ष अथवा पितृ पक्ष की शुरुआत ॥
गरुड़ पुराण में भीष्म पितामह और युधिष्ठिर के संवाद बताए गए हैं। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितृ पक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व को बताया था।
भीष्म पितामह ने बताया कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को ज्ञान दिया था। अपने पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुखी होकर, निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आह्वान करना शुरू कर दिया था। इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए और कहा, “निमि, आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है। चूंकि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को खिलाने और पूजा करने का कार्य किया है, यह वैसा ही है जैसे आपने पितृ यज्ञ किया हो।”
उस समय से श्राद्ध को सनातन धर्म का महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है।
॥ पितरों को श्राद्ध में दी गई वस्तुओं की प्राप्ति ॥
कुछ लोगों को संदेह होता है कि श्राद्ध में समर्पित की गई वस्तुएँ पितरों को कैसे मिलती हैं? कर्मों में भिन्नता के कारण मृत्यु के बाद मनुष्य की गति भी भिन्न-भिन्न होती है। कोई देवता बन जाता है, कोई पितर, कोई भूत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई पेड़ और कोई घास। तब मन में यह शंका होती है कि छोटे से शरीर से भिन्न-भिन्न योनियों में पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है? इस शंका का सुन्दर समाधान स्कन्दपुराण में मिलता है।
एक बार राजा करन्धम ने महायोगी महाकाल से पूछा – ‘मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए अर्पित किया गया जल (तर्पण) और भोजन (पिंडदान) यहीं रहता है, फिर वे वस्तुएं पितरों तक कैसे पहुंचती हैं और पितर कैसे तृप्त होते हैं?’
भगवान महाकाल ने बताया कि – विश्वनियन्ता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरुप होकर पितरों के पास पहुंचती है। इस व्यवस्था के अधिपति हैं अग्निष्वात आदि। पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं और दूर से कही गयी स्तुतियों से ही प्रसन्न हो जाते हैं । वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं और सभी जगह पहुंच सकते हैं । पांच तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति – इन नौ तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर दसवें तत्व के रूप में साक्षात् भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं । इसलिए देवता और पितर गन्ध व रसतत्व से तृप्त होते हैं । शब्दतत्व से रहते हैं और स्पर्शतत्व को ग्रहण करते हैं। पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं और वर देते हैं।
जीवित या मृत व्यक्ति की आत्मा इस दुनिया में उपस्थित है और अन्य सभी आत्माओं से जुडी है। जब एक छोटा सा यज्ञ किया जाता है तो उसकी दिव्य सुगंध और भावना से संसार के सभी प्राणियों में सकारात्मकता बढ़ती है। इसी प्रकार कृतज्ञता की भावना व्यक्त करने के लिए किया गया श्राद्ध सभी प्राणियों में शांतिपूर्ण सद्भावना बढ़ाता है जिससे जीवित और मृत सभी तृप्त होते हैं। यह सत्य है की तर्पण का वह जल उस पितर तक नहीं पहुंचा, वह धरती में गिरकर विलीन हो जाता है। यह सत्य है यज्ञ में आहुति दी गयी सामग्री जलकर वहीं भस्म हो जाती है। परन्तु यह कहना उचित नहीं कि यज्ञ या तर्पण से किसी का कुछ लाभ नहीं हुआ। महत्त्वपूर्ण भावनाएं हैं, जो उन अनुष्ठानों को करने वाले व्यक्ति की होती हैं। श्राद्ध कार्य को केवल रुढ़िवादी परंपरा मात्र से पूरा नहीं करना चाहिए, वरन् पितरों के द्वारा जो उपकार हमारे ऊपर हुए हैं, उनका स्मरण करके, उनके प्रति अपनी श्रद्धा और भावना की वृद्धि करनी चाहिए।
॥ श्राद्ध पक्ष अथवा पितृ पक्ष॥
- सनातन परंपरा में एक पूरा पक्ष पितरों के लिए श्रद्धा का पक्ष होता है। जो श्राद्ध पक्ष अथवा पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है।
- श्राद्ध पक्ष अथवा पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और इस तिथि से सोलवे दिन पर आनेवाली अमावस्या तक चलता है। कई क्षेत्र या पंचांग इस अमावस्या को आश्विन अमावस्या के नाम से जानते है तो कई क्षेत्र या पंचांग में इसी को भाद्रपद की अमावस्या कहते है। अपने क्षेत्र या पंचांग के विशेषज्ञ से आप यह जानकारी पा सकते है। इस पक्ष को श्राद्ध महालय भी कहते है।
- अलग-अलग पुराणों और कथाओं में इस काल को अपने दिवंगत पूर्वजों-पितरों को कव्य अर्पित करने का विधान बताया गया है।
- हिन्दु शास्त्रों के अनुसार मुत्यु होने पर मनुष्य की जीवात्मा चन्द्रलोक की तरफ जाती है और ऊंची उठकर पितृलोक में पहुंचती है। इन मृतात्माओं को अपने नियत स्थान तक पहुंचने की शक्ति प्रदान करने के लिए श्राद्ध, पिण्डदान और तर्पण का विधान किया गया है।
- गरुड़ पुराण के अनुसार यमपुरी के रास्ते से धर्मराज तक पहुंचने के लिए मृतात्माओं को शक्ति प्रदान करने उनके धरतीलोक में जीवित वंशज श्राद्ध, पिण्डदान और तर्पण द्वारा उनतक अन्नजल पहुंचाते है।
- पितृ पक्ष को लेकर हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि, इस समय पितृ धरतीलोक पर आते हैं और किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के आसपास रहते हैं। यदि गुरुजनों का या परिवार के सदस्यों का मुत्यु हो जाय, तो भी मनुष्य की उनके प्रति श्रद्धा स्थिर रहनी चाहिए। इसलिए इस समय पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का विधान है।
- पितर शब्द से भले ही पिता और पुरुषों का ही बोध होता हो, लेकिन श्राद्ध में दिवंगत माता और दादी, परदादी यानि कुल परिवार की दिवंगत माताओं को भी जल और पिंड दिए जाते हैं।
- पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म खास कर पिता या माता की मृत्यु उनकी तिथि पर और अगर वो जीवित है तो दादा अथवा दादी की मृत्यु उनकी तिथि पर और अगर वो जीवित है तो परदादा अथवा परदादी जिनकी मृत्यु हो गई हो उनकी तिथि पर किया जाता है। पिता या माता की मृत्यु हुई हो तो जिसकी मृत्यु बाद में हुई हो उनकी तिथि पर पितृ पक्ष में सभी के लिए एक साथ श्राद्ध किया जाता है।
- हर व्यक्ति ने अपने पूर्व की तीन पीढ़ियों का श्राद्ध करना चाहिए। यह तीन पीढ़ियाँ माता और पिता दोनों की तरफ से होती है। कुल परिवार के सभी पितरों को पिंडदान के साथ तिल डाल कर जल अर्पित कर उनका स्मरण करते हैं। तिल डाल कर जल अर्पित करने को तिलांजलि कहते है। जीवित व्यक्ति के लिए श्राद्ध न करे।
- माता, दादी, और परदादी (मातृ-पितामहि-प्रपितामहि)
- पिता, दादा, और परदादा (पितृ-पितामह-प्रपितामह)
- नाना, परनाना, और वृद्धपरनाना (मातामह-प्रमातामह-वृद्धप्रमातामह)
- श्राद्ध जब भी किया जाए उत्तम है। देव-पितरादि को जितनी अधिक श्रद्धा भावना समर्पित करके प्रसन्न किया जाय उतना उत्तम होता है। यदि नित्य श्रद्धार्पण न कर सके तो नैमित्तिक ही सही, पितृपक्ष का श्राद्ध करना चाहिए।
- यदि किसी माता-पिता के अनेक पुत्र हों और संयुक्त रूप से रहते हों तो सबसे बड़े पुत्र को पितृकर्म करना चाहिए।
- यह पूर्वजों को यह बताने का एक तरीका है कि वे अभी भी परिवार का एक अनिवार्य अंग हैं।
॥ श्राद्ध का महत्व ॥
- श्राद्ध का तात्पर्य श्रद्धाभिव्यक्ति परक कर्म हैं, जो देवात्माओं, महापुरुषों, ऋषियों, गुरुजनों और पितरों की प्रसन्नता के लिए किए जाते हैं।
- यह लेख पितृ पक्ष में किये जाने वाले श्राद्ध पर है। तथापि, वार्षिक श्राद्ध भी किए जाते हैं, जिसमें श्रद्धाभाव से अपने पितृ के उपकारों के लिए उनके प्रति आभार और उनके प्रति भक्ति भाव प्रदर्शित करने की रीति है।
- इन सब अनुष्ठानो में पितरों की तृप्ति के लिए उनकी पूजा के साथ वैदिक विधान से पिण्डदान और तर्पण किया जाता है।
- ऐसा माना जाता है कि यह पिंडदान और तर्पण जिन पूर्वज के लिए किया जाता है वह उनतक पहुँचता है और वे तृप्त होकर श्राद्ध करने वाले अपने कुल को समृद्धि का आशीर्वाद देते है।
- ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में किए श्राद्ध कर्म से पितर तृप्त होते हैं और पितरो का ऋण उतरता है।
- पूर्वज अगर पितृ योनि में है तो यहाँ किये जानेवाले श्राद्ध से उनकी पितृयोनि से मुक्ति का मार्ग भी खुलता है।
- यदि पितर किसी और योनि में है तो यहाँ किये गए पिंडदान और तर्पण उनको उस योनि में भी तृप्ति की अनुभूति कराते है। उदाहरण के तौर पर आप ने सुना होगा की कभी किसी व्यक्ति को बहुत प्यास लगी हो और आसपास जल की मिलने की कोई संभावना न होने के बावजूद अचानक उनको कोई आकर पानी पीलाता है।
- पिण्ड और तर्पण तो मात्र प्रतीक हैं। वास्तविक समपर्ण पितर के प्रति श्रद्धा की ही होती है। यही भावना पितर, देव, ऋषि व महापुरुषों को प्रसन्न करने का माध्यम बनती है।
- सुख सौभाग्य केवल ईश्वर से नहीं मिलते। जब तपती रेत की असहनीय गर्मी से जीवन मर रहा हो, तभी हरी-भरी धरती के शीतल आंचल का महत्व समझ में आता है। इसी तरह जब ग्रहनक्षत्र के अशुभ प्रभाव से जीवन कठिनाईओ से भर जाता है तब पित्रुओं का आशीर्वाद अमृत की तरह सहायक होता है। माने की न माने जो लोग पूर्वजों की संपत्ति का उपभोग करते हैं और उनका श्राद्ध नहीं करते, ऐसे लोगों को पितरों द्वारा शप्त होकर कई दुखों का सामना करना पड़ता है।
- श्राद्ध के साथ-साथ अपने पूर्वजों के नाम पर पेड़ पौधे भी लगाने चाहिए। जैसे ऊपर कहा सुख सौभाग्य केवल ईश्वर से नहीं मिलते। उनके द्वारा निर्मित इस समृद्ध प्रकृति में, जो पंच महाभूतों से बनी है, सौभाग्य भी विद्यमान है। इन भूतों में धरती हमारे सबसे निकट है जो हमारे जीवन का आधार है। इसमें न केवल अन्न जल अपितु वृक्ष वनस्पति भी हमें जीवित और स्वस्थ रहने में मदद करते हैं।
- यदि अपने पितर के नाम पर एक वृक्ष लगाया जाय तो उस वृक्ष की छाया में पलने और विचरने वाले हज़ारो जीवजन्तु, पक्षी और अन्य चराचर का आशीर्वाद पितर और उनके कुल को मिलता है।
- श्रद्धा यदि सत्य को स्पर्श कर ले, तो समझना चाहिए श्राद्ध धन्य हो गया। देव पुरुषों, पितर पुरुषों, दिव्यात्माओं और ईश्वरीय सत्ता के जितने अधिक आशीर्वाद मिले, उतना ही सद्भाग्य होता है। श्रद्धा एक ऐसा गुण है जो व्यक्ति को सद्गुण, सद्विचार और उत्कृष्ट विशेषताओं के आधार पर श्रेष्ठता प्रदान करता है।
॥श्राद्ध और तिथि॥
हिन्दू पञ्चाङ्ग में श्राद्ध के लिए पितृ पक्ष की सोलह तिथियां बताई गई है। जानते हैं कौन सी तिथि पर किस पितर पर श्राद्ध करना चाहिए।
भाद्रपद शुक्ल की पूर्णिमा
जिनकी मृत्यु किसी भी माह की पूर्णिमा तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है। इसे प्रोष्ठपदी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
यदि इस दिन श्राद्ध न कर सके तो उनका श्राद्ध भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी, द्वादशी या पितृमोक्ष अमावस्या पर किया जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष प्रतिपदा
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
ननिहाल के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला नहीं हो या उनके मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो तो उनका श्राद्ध भी भाद्रपद कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि में किया जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है। इसे महाभरणी भी कहा जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्थी
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष पंचमी
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
ऐसे पूर्वज जिनकी मृत्यु अविवाहिता के रूप में होती है उनका श्राद्ध भी भाद्रपद कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि में किया जाता है। यह दिन कुंवारे पितरों के श्राद्ध के लिए समर्पित होता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है। इसे छठ श्राद्ध भी कहा जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष सप्तमी
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
ऐसे पितर जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर हुई हो तो उनका श्राद्ध भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी, द्वादशी या पितृमोक्ष अमावस्या पर किया जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष नवमी
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
माता की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध न करके नवमी तिथि पर उनका श्राद्ध करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि, नवमी तिथि को माता का श्राद्ध करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती हैं। वहीं जिन महिलाओं की मृत्यु तिथि याद न हो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को किया जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष दशमी
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
ऐसे लोग जो संन्यास लिए हुए होते हैं, उन पितरों का श्राद्ध एकादशी तिथि को किया जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वादशी
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
जिनके पिता संन्यास लिए हुए होते हैं उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की द्वादशी तिथि को किया जाता है। चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो। इसलिए तिथि को संन्यासी श्राद्ध भी कहा जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी
जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
ऐसे लोग जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो जैसे आग से जलने, शस्त्रों के आघात से, विषपान से, दुर्घना से या जल में डूबने से हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष अमावस्या
जिनकी मृत्यु किसी भी माह की अमावस्या तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि किया जाता है।
पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात पूर्वजों के श्राद्ध किए जाते हैं। इसे पितृविसर्जनी अमावस्या अथवा महालय समापन भी कहा जाता है।
मृत व्यक्ति के लिए किये जाने वाले श्राद्ध का तो महत्व है ही।
हालाँकि, जीवित वृद्ध की उपेक्षा, अपमान या तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए। हमें जीवित वृद्ध सदस्य के प्रति सत्कार और सम्मान के पवित्र भाव रखने चाहिए। बड़ों के आशीर्वाद से मिलने वाली प्रसिद्धि पाने के लिए ईश्वर स्वयं जन्म लेते हैं।
॥ Shraddha ॥
आयुः कीर्ति बलं तेजो,धनं पुत्रं पशुं स्त्रियः।
ददन्ति पितरस्यतस्य,आरोग्यं नात्रं संशयः।।
It is said in the religious scriptures that the person who performs Shraddha, attains logevity, fame, strength, glory, comfort, children, family and health with the blessings of his/her ancestors.
॥ Beginning of Shraddha Paksha or Pitru Paksha ॥
In Garuda Purana, dialogues between Bhishma Pitamah and Yudhishthir have been described. During the Mahabharata period, Bhishma Pitamah had told Yudhishthir about Shraddha and its importance in Pitru Paksha.
Bhishma Pitamah told that Atri Muni had first given knowledge about Shraddha to Maharishi Nimi. Saddened by the sudden death of his son, Sage Nimi started invoking his ancestors. The ancestors then appeared before him and said, “Nimi, your son has already taken a place among the ancestral gods. Since you have performed the task of feeding and worshiping the soul of your departed son, it is as if you have performed the yagya for your ancestors.”
Since that time Shraddha is considered an important ritual of Sanatan Dharma.
॥ Receipt of offerings given to ancestors in Shraddha ॥
Some people doubt that how do the ancestors get the things dedicated in Shraddha? Due to difference in karma, the fate of a human being after death also varies. Someone becomes a god, someone an ancestor, someone a ghost, someone an elephant, someone an ant, someone a tree and someone a grass. Then this doubt arises in the mind that how do the ancestors get satisfaction in different species from a small body? A beautiful solution to this doubt is found in Skandapuran.
Once King Karandham asked Mahayogi Mahakal – ‘The water (tarpan) and food (pind daan) that is offered by human beings for the ancestors remains here, then how do those things reach the ancestors and how do the ancestors get satisfied?’
Lord Mahakal told that – the controller of this universe has made such arrangements that the material of Shraddha reaches the ancestors as per their wish. The rulers of this system are Agnishwat etc. The nature of ancestors and gods is such that they listen to things said from a distance, accept worship from a distance and become happy only by the praises said from a distance. They know the past, future and present and can reach everywhere. Their body is made up of five tanmatras, mind, intellect, ego and nature – these nine elements and within it resides Lord Purushottam in person as the tenth element. Therefore the gods and ancestors are satisfied with the smell and essence of juice. They live by the element of words and accept the element of touch. Only by purity do they become happy and bless boons.
The soul of a person, living or dead, is present in this world and is connected to all other souls. When a small Yagya is performed, its divine aroma and spirit increase positivity in all the living beings in the world. Similarly, Shraddha performed to express the feeling of gratitude increases peaceful goodwill among all living beings, thereby satisfying all the living and the dead. It is true that the water of tarpan does not reach that ancestor, it falls into the earth and gets dissolved. It is true that the material offered in Yagya gets burnt to ashes there itself. But it is not right to say that no one got any benefit from Yagya or Tarpan. Important are the emotions that the person performing those rituals has. Shraddha work should not be completed only by orthodox tradition, but by remembering the favors done to us by our ancestors, we should increase our devotion and feelings towards them.
॥ Shraddha Paksha or Pitru Paksha॥
- In Sanatan tradition, there is a whole period of reverence for ancestors. Which is known as Shraddha Paksha or Pitru Paksha.
- Shraddha Paksha or Pitru Paksha starts from the full moon day of Shukla Paksha of Bhadrapada month and continues till Amavasya on the sixteenth day from this date. In many regions or calendars, this Amavasya is known as Ashwin Amavasya, while in other regions or calendars, it is called Amavasya of Bhadrapada. You can get this information from the experts of your area or Panchang. This side is also called Shraddha Mahalaya.
- In various Puranas and stories, this period has been described as a time to offer gratitude to our departed ancestors.
- According to Hindu scriptures, after death, the human soul goes towards Chandralok and rises higher and reaches Pitrulok. To provide strength to these dead souls to reach their destination, rituals of Shraddha, Pind Daan and Tarpan have been made.
- According to Garuda Purana, to provide strength to the dead souls to reach Dharamraj via Yampuri, their living descendants in the earthly world offer food and water to them through Shraddha, Pinda Daan and Tarpan.
- There is a belief in Hindu religion regarding Pitru Paksha that at this time the ancestors come to earth and live around their family members in some form or the other. Even if teachers or family members die, one’s faith in them should remain constant. Therefore, at this time there is a tradition of performing Shraddha, Tarpan and Pind Daan of ancestors.
- Though the word ‘Pitra’ refers only to fathers and male, but in Shraddha, water and ‘pind’ are also offered to the deceased mother, grandmother, great grandmother i.e. the deceased mothers (female) of the family.
- In Pitru Paksha, Shraddha rituals are performed especially on the date of death of father or mother, if alive then on the date of death of grandfather or grandmother and if alive then on the date of death of great grandfather or great grandmother who have died. If father or mother has died, then Shraddha is performed for everyone together in Pitru Paksha on the date of death of the one who died later.
- Every person should perform Shraddha of his previous three generations. These three generations happen from both mother and father’s side. All the ancestors of the family are remembered by offering water along with sesame seeds along with Pind Daan. Offering water mixed with sesame seeds is called Tilanjali. Do not perform Shraddha for a living person.
- Mother, grandmother, and great-grandmother (matru-pitamahi-prapitamahi)
- Father, Grandfather, and Great-Grandfather (pitru-pitamaha-prapitamaha)
- Maternal grandfather, great-maternal-grandfather, and great-great-maternal-grandfather (matamaha-pramatamaha-vriddhapramatamaha)
- Whenever Shraddha is performed, it is best. The more devotion you offer to your ancestors and please them, the better it is. If you are not able to pay homage daily, then you should perform Pitru Paksha Shraddha.
- If a parent has many sons and they live jointly, then the eldest son should perform the ancestral duty (Shraadha karma).
- It is a way of letting ancestors know that they are still an essential part of the family.
॥ Importance of Shraddha ॥
- Shraddha means the acts of reverence, which are performed for the happiness of deities, great men, sages, gurus and ancestors.
- This article is on Shraddha performed in Pitru Paksha. However, annual Shraddhas are also performed in which it is a ritual to show gratitude and devotion towards one’s ancestors for their blessings.
- In all these rituals, to satisfy the ancestors, along with their worship, Pind Daan (offering food) and Tarpan (offering water) are done as per Vedic rituals.
- It is believed that this Pind Daan and Tarpan reache the ancestors for whom it is done and they get satisfied and bless their clan with prosperity who performs Shraddha.
- It is believed that by performing Shraddha rituals during Pitru Paksha, the ancestors are satisfied and the debt of the ancestors is reduced.
- If the ancestors are in Pitru Yoni (those residing in the ancestral world), then the Shraddha performed here also opens the way for their liberation from the ancestral world.
- If the ancestors are in some other life, the Pind Daan and Tarpan done here make them feel satisfied in that life also. For example, you might have heard that sometimes a person is very thirsty and despite there being no possibility of finding water nearby, suddenly someone comes and gives him water to drink.
- Pinda and Tarpan are just symbols. Real dedication is due to reverence for the ancestors. This feeling becomes the medium to please ancestors, gods, sages and great men.
- Happiness and good fortune do not come from God alone. When life is dying due to the unbearable heat of the scorching sand, then only the importance of the cool area of the green earth is understood. Similarly, when life is filled with difficulties due to the inauspicious effects of planets, then the blessings of ancestors help like nectar. Believe it or not, those who enjoy the property of their ancestors and do not perform their Shraddha, such people have to face many sorrows after being cursed by their ancestors.
- As said above, happiness and good fortune do not come from God alone. Good luck is also present in this wealthy nature created by him, which is made up of five great elements. Among these elements, the earth is closest to us which is the basis of our life. In this, not only food and water but also trees and plants help us in staying alive and healthy.
- If a tree is planted in the name of one’s ancestors, then the ancestors and their clan get the blessings of thousands of animals, birds and other pastures that grow and roam in the shade of that tree.
- If faith touches the truth, then it should be considered that Shraddha (ritual for ancestors) has been blessed. The more blessings one receives from Gods, ancestors, divine souls and divine powers, the greater is the good luck. Faith is a quality that gives superiority to a person on the basis of virtue, good thoughts and excellent characteristics.
॥Shraddha and Tithi (date in panchanga)॥
In the Hindu calendar, sixteen dates of Pitru Paksha have been mentioned for Shraddha. Let us know on which date Shraddha should be performed for whom (which ancestor).
Bhadrapada Shukla Purnima
Shraddha of those who died on the full moon of any month is performed on this tithi. It is also known as Prosthapadi Purnima.
If one cannot perform Shraddha on this day, then his/her Shraddha is performed on Bhadrapada Krishna Paksha Ashtami, Dwadashi or Pitrumoksha Amavasya.
Bhadrapada Krishna Paksha Pratipada
Those who died on the Pratipada of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi.
If there is no one in the maternal grandparent’s family to perform Shraddha or the date of their death is not known, then their Shraddha is also performed on Bhadrapada Krishna Paksha Pratipada.
Bhadrapada Krishna Paksha Dwitiya
Those who died on the Dwitiya of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi.
Bhadrapada Krishna Paksha Tritiya
Those who died on the Tritiya of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi. It is also called Mahabharani.
Bhadrapada Krishna Paksha Chaturthi
Those who died on Chaturthi of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi.
Bhadrapada Krishna Paksha Panchami
Those who died on the Panchami of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi.
Shraddha of those ancestors who died unmarried is also performed on Bhadrapada Krishna Paksha Panchami Tithi. This day is dedicated to the Shraddha of unmarried ancestors.
Bhadrapada Krishna Paksha Shashthi
Those who died on the Shashthi of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi. It is also called Chhath Shraddha.
Bhadrapada Krishna Paksha Saptami
Those who died on the Saptami of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi.
Bhadrapada Krishna Paksha Ashtami
Those who died on the Ashtami of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi.
If such ancestors died on the full moon day, their Shraddha is performed on Bhadrapada Krishna Paksha Ashtami, Dwadashi or Pitrumoksha Amavasya.
Bhadrapada Krishna Paksha Navami
Those who died on the Navami of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi.
Instead of performing Shraddha according to the tithi of death of the mother, her Shraddha should be performed on Navami Tithi. It is believed that by performing Shraddha of mother on Navami Tithi, one gets relief from all troubles. At the same time, Shraddha of those women whose death date is not known is also performed on Navami Tithi.
Bhadrapada Krishna Paksha Dashami
Those who died on the Dashami of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi.
Bhadrapada Krishna Paksha Ekadashi
Those who died on the Ekadashi of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi.
For those people who have taken Sannyasa, Shraddha of those ancestors is performed on Ekadashi date.
Bhadrapada Krishna Paksha Dwadashi
Those who died on the Dwadashi date of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi.
For those whose father have taken Sannyasa, Shraddha is performed on the Dwadashi of Pitru Paksha. No matter what date he died. Therefore the date is also called Sannyasi Shraddha.
Bhadrapada Krishna Paksha Trayodashi
Those who died on the Trayodashi of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi.
Shraddha of children is performed on Bhadrapada Krishna Paksha Trayodashi date.
Bhadrapada Krishna Paksha Chaturdashi
Those who died on the Chaturdashi of Shukla Paksha or Krishna Paksha of any month, their Shraddha is performed on this tithi.
Those people who have died untimely death like due to burning by fire, injury by weapons, consumption of poison, accident or drowning in water, their Shraddha should be performed on Chaturdashi Tithi.
Bhadrapada Krishna Paksha Amavasya
Shraddha of those who died on Amavasya of any month is performed on this tithi.
On the last day of Pitru Paksha, Shraddha of known and unknown ancestors is performed on Sarvapitri Amavasya. It is also called Pitru Visarjani Amavasya or Mahalaya Completion.