
॥चाक्षुषोपनिषद् प्रयोग॥
स्तोत्र का प्रतिदिन २१ बार पाठ करना चाहिए।
स्तोत्र का पाठ करते समय, साधक के सामने जल से भरा तांबे का गिलास रखना चाहिए ताकि जल को अभिमंत्रित किया जा सके। एक बैठक में स्तोत्र का कम से कम २१ बार पाठ करना चाहिए। यदि २१ से अधिक करना हो तो कर सकते है।
२१ या जितने भी पाठ करने हो उनके पुरे होने के पश्चात् सिर्फ एक बार फल श्रुति जरूर पढ़ें।
फल श्रुति का पाठ पूरा करने के बाद, दाहिने हाथ की उंगलिया और अंगूठे से अभिमंत्रित जल से दिन में ३-४ बार आँखों को छींटे लगाएं और ग्लास का बचा अभिमन्त्रित जल पी लें।
यदि आप यह किसी और के लिए कर रहे हैं, तो अभिमंत्रित जल को रोगी की आंखों पर लगाएं और उसे जल पिने के लिए दें।
कुछ ही समय में नेत्र रोग से मुक्ति मिलना अथवा संभवित लाभ मिलना शुरू हो जाता है। यहाँ
आवश्यकता है प्रयोग करने वाले की श्रद्धा, विश्वास एवं अनुष्ठान आरम्भ करने की।
॥चाक्षुषोपनिषद् विनियोग॥
(नमस्कार) ॐ अस्य अश् चाक्षुषी विद्याया
(Head Index+Middle) अहिर् बुध्न्य ऋषिः
(Mouth Middle+Ring) गायत्री छन्दः
(Heart Middle+Ring) सूर्यो देवता
(Rib-right Middle+Ring) ॐ बीजम्
(Rib-left Middle+Ring) नमः शक्तिः
(Rib-bottom Middle+Ring) स्वाहा कीलकम् (नमस्कार अंजलि) चक्षूरोग निवृत्तये जपे विनियोगः॥
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ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेज स्थिरो भव। मां पाहि पाहि।
त्वरितम् चक्षुरोगान् शमय शमय।
मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय।
यथा अहम् अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय।
कल्याणम् कुरु कुरु।
यानि मम् पूर्वजन्मो पार्जितानि चक्षुः प्रतिरोधक दुष्कृतानि तानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय।
ॐ नमः चक्षुस् तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय।
ॐ नमः करुणाकराय अमृताय। ॐ नमः सूर्याय।
ॐ नमो भगवते सूर्याय अक्षितेजसे नमः। खेचराय नमः। महते नमः। रजसे नमः। तमसे नमः।
असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय। उष्णो भगवान् शुचिरूप:।
हंसो भगवान् शुचिर प्रतिरूपः।
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नीचे दी गई फलश्रुति अंतमें एक बार पढ़े।
य इमां चाक्षुष्मतीं विद्यां ब्राह्मणो नित्यम् अधीयते न तस्य अक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अंधो भवति।
न तस्य कुले अंधो भवति।
अष्टौ ब्राह्मणान् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिर् भवति।
विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं पुरुषं ज्योतिरूपमं तपतं सहस्त्र रश्मिः शतधावर्तमानः पुरः प्रजानाम् उदयत्येष सूर्यः। ॐ नमो भगवते आदित्याय॥
इति स्तोत्रम्॥