Ganapati Mahalakshmi Diwali

Diwali Mahaganapati Mahalakshmi Pujan | दीपावली महागणपति महालक्ष्मी पूजन

Ashish Shrungarpure

Your Personal Astrologer, Yoga Teacher, & Life and Business Coach

Our Services...

Horoscope Reading

Numerology Suggestion

Vastu Shastra Consulting

Festival Sadhana

Daily Yoga Programs

Courses | Coaching

Read Blogs...

Trend

HOROSCOPE 2024

Astrology | ज्योतिष​

Devotional

Numerology

Vastu Shastra | वास्तु शास्त्र

Yoga And Kundalini Awakening

Sadhana Marg | Mantra Yantra Tantra Sarvatra

Video Blogs...

आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं। यह पर्व आप के और आप के परिवार के लिए समृद्धि और प्रसन्नता लाये यही प्रार्थना।
“आशीष श्रृंगारपुरे”
फाउंडर – ‘लाइफ एंड’ औरा और ‘श्री अंजनिल’

दीपावली पूजन में गृहस्थों को महागणपति, अष्टलक्ष्मी सहित महालक्ष्मी पूजन करना चाहिए।

यहाँ गृहस्थों को सरल भाषा में पूजन दे रहे है।

दीपावली पूजा का समय॥

दीपावली पर, महागणपति, अष्टलक्ष्मी सहित महालक्ष्मी पूजन स्थानिक सूर्यास्त के पश्चात कर सकते है। हालांकि, यह पूजा कार्तिक अमावस्या शुरू होने से पूर्ण होने तक कभी भी की जा सकती है। रात्रि के दूसरे और तीसरे प्रहर में अर्थात रात्रि के लगभग १० से सुबह ३ में, अगर अमावस्या तिथि चल रही है तो, यह पूजा अपने पूर्ण रूप में फल दने की शक्ति रखती है।

॥दीपावली पूजा संकल्पम्॥

(दाहिने हाथ में जल और पुष्प लेकर संकल्प करें। संकल्प लेने के पश्चात पुष्प और जल को एक पात्र में छोड़ दे।)

ममात्मनः कार्तिक-अमावस्या-दीपावली-पर्व निमित्ते श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त-फलप्राप्त्यर्थं दु:ख-दारिद्रय-दौर्भाग्यादि-सकलदोष-शमनार्थं प्रचुर-धनसंपत्ति-प्राप्त्यर्थं श्री महागणपति, श्री अष्टलक्ष्मी सहित श्री महालक्ष्मी पूजन अहम् करिष्ये॥

॥श्री गुरु ध्यानम्​॥

(दोनों हाथों में पुष्प लेकर ध्यान करें।)
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नम​:॥
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्ञन शलाकया। चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नम​:॥
देवताया दर्शनम् च करुणा वरुणालयं। सर्व सिद्धि प्रदातारं श्री गुरुं प्रणमाम्यहम्॥
वर​-अभय कर नित्यं श्वेत पदम᳭ निवासिनं। महाभय निहन्तारं गुरुदेव नमाम्यहम्॥

॥महागणपति पूजनम्॥

Mahaganapati, Lord Ganesh

॥श्री महागणपति ध्यानम्॥

(चावल से अष्टदल कमल निर्माण कर मध्य में महागणपति को स्थापित करें।)
(दोनों हाथों में पुष्प लेकर श्री महागणपति का ध्यान करें।)

गणानां त्वा गणपतिगं᳭हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिगं᳭हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिगं᳭हवामहे वसो मम​। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥ [शु॰यजु॰ २३।१९]

गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्। ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ न​: श्रृण्वन्नूतिभि: सीद सादनम्॥ [ऋक्॰ २।२३।१]

नि षु सीद गणपते गणेषु त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम्। न ऋते त्वत्क्रियते किं चनारे महामर्कं मघवञ्चित्रमर्च​॥ [ऋक्॰ १०।११२।९]

ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:। ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतिं ध्यायामि ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥

॥श्री महागणपति प्राणप्रतिष्ठा॥

(दोनों हाथों or दाहिनी अनामिका से यन्त्र के मध्य में or प्रतिमा के हृदय पर स्पर्श करें।)

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमम् तनोत्वरिष्टम् यज्ञम् समिमम् दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामो ॐ प्रतिष्ठ॥ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥

ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:। प्राणप्रतिष्ठापनार्थे सर्वोपचारार्थे च गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि। ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतिं सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्॥

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं स​: सोऽहं ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतिं प्राणा इह प्राणा: जीव इह स्थित​: सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि वाङ्-मनस्त्वक्-चक्षु-श्रोत्र​-जिह्वा-घ्राणपाणि-पाद​-पायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।

(दोनों हाथों or दाहिनी अनामिका से यन्त्र के मध्य में or प्रतिमा के हृदय पर पुष्प दें।)

ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतिं इहागच्छहतिष्ठ॥ पुष्प पुष्पितास्तर्पिता: सन्तु।

॥अथ श्री गणेशाथर्वशीर्ष व्याख्यास्याम​:॥

(देवता के प्राण जाग्रति करने अथर्वशीर्ष के पाठ का विधान है। हाथ में पुष्प लें कर अथर्वशीर्ष का पाठ करे और पाठ के पश्चात देवता को पुष्प अर्पण करें।)

॥ शान्तिपाठ​॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवागँसस्तनूभिर्व्य​शेम देवहितं यदायु:॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्ताक्षर्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
ॐ शान्तिः। शान्तिः। शान्तिः॥

ॐ लं नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि। त्वमेव केवलं कर्ताऽसि। त्वमेव केवलं धर्ताऽसि। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि। त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम्॥१॥ ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि॥२॥
अव त्व माम्। अव वक्तारम᳭। अव श्रोतारम᳭। अव दातारम᳭। अव धातारम᳭। अवानूचानमव शिष्यम᳭। अव पश्चातात्। अव पुरस्तात्। अवोत्तरात्तात्। अव दक्षिणात्तात्। अवचोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्। सर्वतो मां पाहि पाहि समंतात्॥३॥
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मय:। त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि॥४॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायतें। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारिवाक्पदानि॥५॥
त्वं गुणत्रयातीत:। त्वमवस्थात्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं। रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं। वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं। ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्॥६॥
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरम्। अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं। तारेण ऋद्धम्। एतत्तव मनुस्वरूपम्। गकार: पूर्वरूपम्। अकारो मध्यमरूपम्। अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्। बिन्दुरूत्तररूपम्। नाद: संधानम्। संहिता संधि:। सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:। निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नम:॥७॥
एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंति: प्रचोदयात्॥८॥
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्। रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपूजितम्।। भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्। आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृते: पुरुषात्परम्। एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:॥९॥
नमो व्रातपतये नमो गणपतये नम:। प्रमथपतये नमस्ते अस्तु लंबोदरायैकदंताय विघ्ननाशिने शिवसुताय वरदमूर्तये नमो नम:॥१०॥

॥ शान्तिपाठ​॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवागँसस्तनूभिर्व्य​शेम देवहितं यदायु:॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्ताक्षर्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
ॐ शान्तिः। शान्तिः। शान्तिः॥
इति सार्थ श्रीगणपत्यथर्वशीर्षं समाप्तम्॥

॥श्री महागणपति षोडपाशोचार पूजनम्॥

आवाहन (आवहन करें)

सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात। स भूमि सर्वत स्पृत्वाऽत्यत्तिष्ठद्दशाङ᳭गुलम्॥१॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ आवहनम् समर्पयामि॥

आसन​ (आसन दें)

पुरुष एवेदं सर्वं यद᳭भूतं यच्च भाव्यम्। उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति॥२॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ आसनम् समर्पयामि॥

पाद्य​ (जल से पैर धोए)

एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः। पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥३॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ पाद्यं समर्पयामि॥

अर्घ्य​ (अर्घ्य प्रदान करें | जल से हाथ धोए)

त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः। ततो विष्वङ् व्यक्रामत् साशनानशने अभि॥४॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ अर्घ्यं समर्पयामि॥

आचमन​ (पानी पिलाए)

ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुषः। स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः॥५॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ आचमनीयं समर्पयामि॥

स्नान​ (स्नान कराएं)

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम्। पशूँस्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये॥६॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ स्नानं समर्पयामि॥

पञ्चामृत​-स्नान​ (दूध, दही, घी, मधु, शक्कर)

पयोदधि घृतं चैवमधु च शर्करायुतम्। पञ्चामृतं मयाऽऽनीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि॥

शुद्धोदक स्नान​ (स्नान कराएं)

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिम कुरु॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि॥

वस्त्र​ पहनाए

तस्माद्यज्ञात् सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे। छन्दासि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत॥७॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ वस्त्रं समर्पयामि॥

यज्ञोपवीत पहनाए

तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः। गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः॥८॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ यज्ञोपवीतं समर्पयामि॥

चन्दन

तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः। तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये॥९॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ चन्दनं समर्पयामि॥

दूर्वा

यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्। मुखं किमस्यासीत किं बाहू किमूरू पादा उच्येते॥१०॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ दूर्वाङ्कुरान​ समर्पयामि॥

धूप

ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः। ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद᳭भ्यां शूद्रो अजायत॥११॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ धूपं आघ्रापयामि॥

दीप

चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत। श्रोत्राद् वायुश्च​ प्राणश्च मुखादग्निरजायत॥१२॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ दीपं दर्शयामि॥\

नैवेद्य

नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत​। पद᳭भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ लोकाँ अकल्पयन्॥१३॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ नैवेद्यं समर्पयामि॥

(पांच बार भगवान को खाना खिलाए।)
प्राणाय स्वाहा। अपानाय स्वाहा। व्यानाय स्वाहा। उदानाय स्वाहा। समानाय स्वाहा।
(सरबत के लिए पानी दें।)
मध्येपानीयम् समर्पयामि।
(फिर से पांच बार भगवान को खाना खिलाए।)
प्राणाय स्वाहा। अपानाय स्वाहा। व्यानाय स्वाहा। उदानाय स्वाहा। समानाय स्वाहा।
(पानी से हाथ धोए।)
हस्त प्रक्षालनम् समर्पयामि।
(पानी से मुख धोए।)
मुख प्रक्षालनम् समर्पयामि।
आचमन​ (पानी पिलाए।)
आचमनम् समर्पयामि।

प्रदक्षिणा

यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत। वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः॥१४॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ प्रदक्षिणां समर्पयामि॥

नमस्कार

सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः। देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन् पुरुषं पशुम्॥१५॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ नमस्कारं समर्पयामि॥

मंत्रपुष्प

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पू र्वे साध्याः सन्ति देवाः॥१६॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ मंत्रपुष्पं समर्पयामि॥
नानासुगन्धि-पुष्पाणि यथाकालोद्-भवानि च। पुष्पाञ्ञलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे। स मे कामान्कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु। कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम:। ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायै स्यात् सार्वभौम: सार्वायुषम्-आंतादा परार्धात् पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे॥ आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: ऋद्धिसिद्धिसहिताय​ महागणाधिपतये नम​:॥ मंत्रपुष्पाञ्ञलिं समर्पयामि॥

॥अष्टलक्ष्मी सहित​ महालक्ष्मी पूजनम्॥

Mahalakshmi, Lakshmi.

॥श्री अष्टलक्ष्मी सहित​ महालक्ष्मी ध्यानम्॥

(दोनों हाथों में पुष्प लेकर श्रीमहालक्ष्मीनारायण का ध्यान करें।)

ॐ भूर्भुव​: स्व​: श्री धनलक्ष्म्यै नम:॥ धनलक्ष्मीम् ध्यायामि ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: श्री धान्यलक्ष्म्यै नम:॥ धान्यलक्ष्मीम् ध्यायामि ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: श्री आद्यलक्ष्म्यै नम:॥ आद्यलक्ष्मीम् ध्यायामि ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: श्री वीरलक्ष्म्यै नम:॥ वीरलक्ष्मीम् ध्यायामि ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: श्री विजयलक्ष्म्यै नम:॥ विजयलक्ष्मीम् ध्यायामि ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: श्री गजलक्ष्म्यै नम:॥ गजलक्ष्मीम् ध्यायामि ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: श्री सन्तानलक्ष्म्यै नम:॥ सन्तानलक्ष्मीम् ध्यायामि ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: श्री ऐश्वर्यलक्ष्म्यै नम:॥ ऐश्वर्यलक्ष्मीम् ध्यायामि ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: श्री अष्ट​लक्ष्म्यै नम:॥ अष्ट​लक्ष्मीम् ध्यायामि ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥

नमस्तेऽस्तू महामाये श्रीपिठे सूरपुजिते। शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तुते॥
पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्हस्वरूपिणी। परमेशि जगन्मातर्र महालक्ष्मी नमोऽस्तुते॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:। अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्मीम् ध्यायामि ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥

॥श्री अष्टलक्ष्मी सहित​ महालक्ष्मी प्राणप्रतिष्ठा॥

(दोनों हाथों or दाहिनी अनामिका से यन्त्र के मध्य में or प्रतिमा के हृदय पर स्पर्श करें।)

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमम् तनोत्वरिष्टम् यज्ञम् समिमम् दधातु।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो ॐ प्रतिष्ठ॥ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥

ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:। प्राणप्रतिष्ठापनार्थे सर्वोपचारार्थे च गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि। अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्मीम् सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्॥

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं स​: सोऽहं अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्मीम् प्राणा इह प्राणा: जीव इह स्थित​: सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि वाङ्-मनस्त्वक्-चक्षु-श्रोत्र​-जिह्वा-घ्राणपाणि-पाद​-पायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।

(दोनों हाथों or दाहिनी अनामिका से यन्त्र के मध्य में or प्रतिमा के हृदय पर पुष्प दें।)

अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्मीम् इहागच्छहतिष्ठ॥ पुष्प पुष्पितास्तर्पिता: सन्तु।

॥अथ श्रीदेव्यथर्वशीर्ष व्याख्यास्याम​:॥

(देवता के प्राण जाग्रति करने अथर्वशीर्ष के पाठ का विधान है। हाथ में पुष्प लें कर अथर्वशीर्ष का पाठ करे और पाठ के पश्चात देवता को पुष्प अर्पण करें।)

॥ शान्तिपाठ​॥

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवागँसस्तनूभिर्व्य​शेम देवहितं यदायु:॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्ताक्षर्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
ॐ शान्तिः। शान्तिः। शान्तिः॥

ॐ सर्वे वै देवा देवीमुपतस्थुःकासि त्वं महादेवीति॥१॥
साब्रवीत् – अहं ब्रह्मस्वरूपिणी। मत्तः प्रकृतिपुरुषात्मकं जगत्। शून्यं चाशून्यं च॥२॥
अहमानन्दानानन्दौ। अहं विज्ञानाविज्ञाने। अहं ब्रह्माब्रह्मणी वेदितव्ये। अहं पञ्चभूतान्यपञ्चभूतानि। अहमखिलं जगत्॥३॥
वेदोऽहमवेदोऽहम्। विद्याहमविद्याहम्। अजाहमनजाहम्। अधश्चोर्ध्वं च तिर्यक्चाहम्॥४॥
अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चरामि। अहमादित्यैरुत विश्वदेवैः। अहं मित्रावरुणावुभौ बिभर्मि। अहमिन्द्राग्नी अहमश्विनावुभौ॥५॥
अहं सोमं त्वष्टारं पूषणं भगं दधामि। अहं विष्णुमुरुक्रमं ब्रह्माणमुत प्रजापतिं दधामि॥६॥
अहं दधामि द्रविणं हविष्मतेसुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते। अहं राष्ट्री सङ्गमनी वसूनांचिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम्। अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन्ममयोनिरप्स्वन्तः समुद्रे। य एवं वेद। सदैवीं सम्पदमाप्नोति॥७॥
ते देवा अब्रुवन् – नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्॥८॥
तामग्निवर्णां तपसा ज्वलन्तीं वैरोचनीं कर्मफलेषु जुष्टाम्। दुर्गां देवीं शरणं प्रपद्यामहेऽसुरान्नाशयित्र्यै ते नमः॥९॥
देवीं वाचमजनयन्त देवास्तां विश्वरूपाः पशवो वदन्ति। सा नो मन्द्रेषमूर्जं दुहाना धेनुर्वागस्मानुप सुष्टुतैतु॥१०॥
कालरात्रीं ब्रह्मस्तुतां वैष्णवीं स्कन्दमातरम्। सरस्वतीमदितिं दक्षदुहितरं नमामः पावनां शिवाम्॥११॥
महालक्ष्म्यै च विद्महे सर्वशक्त्यै च धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्॥१२॥
अदितिर्ह्यजनिष्ट दक्ष या दुहिता तव। तां देवा अन्वजायन्त भद्रा अमृतबन्धवः॥१३॥
कामो योनिः कमला वज्रपाणिर्गुहा हसा मातरिश्वाभ्रमिन्द्रः। पुनर्गुहा सकला मायया च पुरूच्यैषा विश्वमातादिविद्योम्॥१४॥
एषाऽऽत्मशक्तिः। एषा विश्वमोहिनी। पाशाङ्कुशधनुर्बाणधरा। एषा श्रीमहाविद्या। य एवं वेद स शोकं तरति॥१५॥
नमस्ते अस्तु भगवतिमातरस्मान् पाहि सर्वतः॥१६॥
सैषाष्टौ वसवः। सैषैकादश रुद्राः। सैषा द्वादशादित्याः। सैषा विश्वेदेवाः सोमपा असोमपाश्च। सैषा यातुधाना असुरारक्षांसि पिशाचा यक्षाः सिद्धाः। सैषा सत्त्वरजस्तमांसि। सैषा ब्रह्मविष्णुरुद्ररूपिणी। सैषा प्रजापतीन्द्रमनवः। सैषा ग्रहनक्षत्रज्योतींषि। कलाकाष्ठादिकालरूपिणी। तामहं प्रणौमि नित्यम्॥ पापापहारिणीं देवीं भुक्तिमुक्तिप्रदायिनीम्। अनन्तां विजयां शुद्धां शरण्यां शिवदां शिवाम्॥१७॥
वियदीकारसंयुक्तं वीतिहोत्रसमन्वितम्। अर्धेन्दुलसितं देव्याबीजं सर्वार्थसाधकम्॥१८॥
एवमेकाक्षरं ब्रह्मयतयः शुद्धचेतसः। ध्यायन्ति परमानन्दमया ज्ञानाम्बुराशयः॥१९॥
वाङ्माया ब्रह्मसूस्तस्मात्षष्ठं वक्त्रसमन्वितम्। सूर्योऽवाम-श्रोत्रबिन्दुसंयुक्तष्टात्तृतीयकः। नारायणेन सम्मिश्रोवायुश्चाधरयुक् ततः। विच्चे नवार्णकोऽर्णः स्यान्महदानन्ददायकः॥२०॥
हृत्पुण्डरीकमध्यस्थां प्रातःसूर्यसमप्रभाम्। पाशाङ्कुशधरां सौम्यां वरदाभयहस्तकाम्। त्रिनेत्रां रक्तवसनां भक्तकामदुघां भजे॥२१॥
नमामि त्वां महादेवींमहाभयविनाशिनीम्। महादुर्गप्रशमनीं महाकारुण्यरूपिणीम्॥२२॥
यस्याः स्वरूपं ब्रह्मादयो नजानन्ति तस्मादुच्यते अज्ञेया। यस्या अन्तो न लभ्यतेतस्मादुच्यते अनन्ता। यस्या लक्ष्यं नोपलक्ष्यतेतस्मादुच्यते अलक्ष्या। यस्या जननं नोपलभ्यतेतस्मादुच्यते अजा। एकैव सर्वत्र वर्ततेतस्मादुच्यते एका। एकैव विश्वरूपिणीतस्मादुच्यते नैका। अत एवोच्यतेअज्ञेयानन्तालक्ष्याजैका नैकेति॥२३॥
मन्त्राणां मातृका देवीशब्दानां ज्ञानरूपिणी। ज्ञानानां चिन्मयातीता शून्यानां शून्यसाक्षिणी। यस्याः परतरं नास्तिसैषा दुर्गा प्रकीर्तिता॥२४॥
तां दुर्गां दुर्गमां देवींदुराचारविघातिनीम्। नमामि भवभीतोऽहंसंसारार्णवतारिणीम्॥२५॥ ॥इति श्रीदेव्यथर्वशीर्षम्॥

॥श्री अष्टलक्ष्मी सहित​ महालक्ष्मी षोडपाशोचार पूजनम्॥

आवाहन (आवहन करें)

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ आवहनम् समर्पयामि॥

आसन​ (आसन दें)

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥२॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ आसनम् समर्पयामि॥

पाद्य​ (जल से पैर धोए)

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्। श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्॥३॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ पाद्यं समर्पयामि॥

अर्घ्य​ (अर्घ्य प्रदान करें | जल से हाथ धोए)

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्॥४॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:​॥ अर्घ्यं समर्पयामि॥

आचमन​ (पानी पिलाए)

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्। तां पद्मिनीमीं शरणंप्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥५॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ आचमनीयं समर्पयामि॥

स्नान​ (स्नान कराएं)

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः। तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः॥६॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ स्नानं समर्पयामि॥

पञ्चामृत​-स्नान​ (दूध, दही, घी, मधु, शक्कर)

पयोदधि घृतं चैवमधु च शर्करायुतम्। पञ्चामृतं मयाऽऽनीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि॥

शुद्धोदक स्नान​ (स्नान कराएं)

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिम कुरु॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि॥

वस्त्र​ पहनाए

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह। प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥७॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ वस्त्रं समर्पयामि॥

यज्ञोपवीत पहनाए

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्। अभूतिमसमृद्धिं च सर्वा निर्णुद मे गृहात्॥८॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​: ॥ यज्ञोपवीतं समर्पयामि॥

चन्दन

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरींग् सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥९॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ चन्दनं समर्पयामि॥

पुष्प

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि। पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥१०॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ पुष्पाणि समर्पयामि॥

धूप

कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम। श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्॥११॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ धूपं आघ्रापयामि॥

दीप

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे। नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥१२॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ दीपं दर्शयामि॥

नैवेद्य

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१३॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ नैवेद्यं समर्पयामि॥

(पांच बार भगवान को खाना खिलाए।)
प्राणाय स्वाहा। अपानाय स्वाहा। व्यानाय स्वाहा। उदानाय स्वाहा। समानाय स्वाहा।
(सरबत के लिए पानी दें।)
मध्येपानीयम् समर्पयामि।
(फिर से पांच बार भगवान को खाना खिलाए।)
प्राणाय स्वाहा। अपानाय स्वाहा। व्यानाय स्वाहा। उदानाय स्वाहा। समानाय स्वाहा।
(पानी से हाथ धोए।)
हस्त प्रक्षालनम् समर्पयामि।
(पानी से मुख धोए।)
मुख प्रक्षालनम् समर्पयामि।
आचमन​ (पानी पिलाए।)
आचमनम् समर्पयामि।

प्रदक्षिणा

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१४॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ प्रदक्षिणां समर्पयामि॥

नमस्कार

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पूरुषानहम्॥१५॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ नमस्कारं समर्पयामि॥

मंत्रपुष्प

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्॥१६॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै नम​:॥ मंत्रपुष्पं समर्पयामि॥

॥वैदिक आरती॥

ॐ ये देवासो दिव्येकादश स्थ पृथिव्यामध्येकादश स्थ​।
अप्सुक्षितो महिनैकादश स्थ ते देवासो यज्ञमिमं जुषध्वम्॥
[शु॰यजु॰७।१९]

ॐ आ रात्रि पार्थिव गं᳭ रज​: पितुरप्रायि धामभि:।
दिव​: सदागं᳭सि बृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तम​:॥
[शु॰यजु॰३४।३२]

ॐ इदगं᳭हवि: प्रजननं मे अस्तु दशवीर गं᳭ सर्वगण गं᳭ स्वस्तये।
आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि।
अग्नि: प्रजां बहुलां मे करोत्वन्नं पयो रेतो अस्मासु धत्त​॥
[शु॰यजु॰१९।४८]

॥श्री महालक्ष्मी आरती॥

ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत हर-विष्णु धाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

उमा रमा ब्रह्माणी तुम ही जग-माता। मैया तुम ही जग-माता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

दुर्गा रुप निरञ्जनि सुख सम्पत्ति दाता। मैया सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत
जो कोई तुमको ध्यावत ऋद्धि सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभदाता। मैया तुम ही शुभदाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी भवनिधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

जिस घर में तुम रहती तहँ सब सद् गुण हो जाता। मैया सब सद् गुण हो जाता।
सब सम्भव हो जाता
सब सम्भव हो जाता मन नहिं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम बिन यज्ञ न होते वस्त्र न हो पाता। मैया वस्त्र न हो पाता।
खान पान का वैभव सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

शुभ गुण मन्दिर सुन्दर क्षीरोदधि जाता। मैया क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

महालक्ष्मीजी की आरती जो कोई नर​ गाता। जो कोई नर​ गाता।
उर आनन्द समाता
उर आनन्द समाता पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

॥मंत्र पुष्पांजली॥

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। ते हं नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:॥

नानासुगन्धि-पुष्पाणि यथाकालोद्-भवानि च। पुष्पाञ्ञलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर॥

नानासुगन्धि-पुष्पाणि यथाकालोद्-भवानि च। पुष्पाञ्ञलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वरी ॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने। नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे। स मे कामान्कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु। कुबेराय वैश्रवणाय। महाराजाय नम:। ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी स्यात् सार्वभौम: सार्वायुषां आंतादा परार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति॥
ॐ भूर्भुव​: स्व​: महागणपति अष्टलक्ष्मीसहिताय महालक्ष्म्यै च नम​:॥ मंत्रपुष्पाञ्ञलिं समर्पयामि॥

Wrtie a feedback about the blog.

Blog Feedback

Personal Horoscope

Discover your cosmic blueprint through personalized astrology consultations.

Horoscope Matchmaking

Discover the strength of horoscope matchmaking for you and your loved one!

Numerology Matchmaking

Discover the strength of numerology matchmaking for you and your loved one!

Numerology Consultation

Numerology empowers you to attract luck by aligning your name with its ideal spelling.

Vastu Consultation

Optimize your living space with expert vastu advice for harmony and prosperity.

Meditation Programs

Join our enlightening Kundalini meditation program designed to enhance awakening.

Subscribe to Our Weekly Updates

Ignite your passion for knowledge by joining our newsletter! Unlock exclusive insights, incredible offers, and the latest updates on astrology, numerology, vastu shastra, kundalini awakening techniques, sadhana, and tantra right in your inbox. It’s easy to begin your journey – simply fill out the form below and step into a world of discovery!

Newsletter Subscription