|| Lingashtakam || ॥लिङ्गाष्टकं॥
श्री गणेशाय नमः ॥
ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिङ्गं निर्मलभासित शोभित लिङ्गम् ।
जन्मज दुःख विनाशक लिङ्गं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ १ ॥
देवमुनि प्रवरार्चित लिङ्गं कामदहन करुणाकर लिङ्गम् ।
रावण दर्प विनाशक लिङ्गं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ २ ॥
सर्व सुगन्ध सुलेपित लिङ्गं बुद्धि विवर्धन कारण लिङ्गम् ।
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ३ ॥
कनक महामणि भूषित लिङ्गं फणिपति वेष्टित शोभित लिङ्गम् ।
दक्ष सुयज्ञ विनाशन लिङ्गं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ४ ॥
कुङ्कुम चन्दन लेपित लिङ्गं पङ्कज हार सुशोभित लिङ्गम् ।
सञ्चित पाप विनाशन लिङ्गं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ५ ॥
देवगणार्चित सेवित लिङ्गं भावै-र्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकर कोटि प्रभाकर लिङ्गं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ६ ॥
अष्टदलोपरिवेष्टित लिङ्गं सर्वसमुद्भव कारण लिङ्गम् ।
अष्टदरिद्र विनाशन लिङ्गं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ७ ॥
सुरगुरु सुरवर पूजित लिङ्गं सुरवन पुष्प सदार्चित लिङ्गम् ।
परमपरम् परमात्मक लिङ्गं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ ८ ॥
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेश्शिव सन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥